Google की पैरेंट कंपनी Alphabet Inc. अभी काफी ज्यादा मुसीबत में है. अगर फेडरल जज जस्टिस डिपार्टमेंट के प्रस्ताव को मंजूरी देते हैं तो कंपनी को Google Chrome को बेचना पड़ेगा. कंपनी की मोनोपॉली को रोकने के लिए ऐसा फैसला सुनाया जा सकता है. जिसके बाद कंपनी को हर हाल में दुनियाभर में सबसे पॉपुलर ब्राउजर क्रोम को बेचना पड़ेगा.
अगर ऐसा होता है तो आप इसकी कीमत जानकार आश्चर्य होगा. एक अनुमान के मुताबिक Google Chrome को 20 बिलियन डॉलर में बेचा जा सकता है. 20 बिलियन यानी लगभग 1.7 लाख करोड़ रुपये. इस रकम का अंदाजा इस बात से लगाइए कि रिलायंस की वैल्यू लगभग 200 बिलियन डॉलर है. यानी कंपनी के 10 परसेंट जितनी वैल्यू में क्रोम को बेचा जा सकता है.
गूगल पर आरोप लगाया गया है कि इसने गैर-कानूनी तरीके से सर्च इंजन मार्केट में अपनी पकड़ बनाई है. Bloomberg की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में कई राज्यों के सपोर्ट से जस्टिस डिपार्टमेंट क्रोम, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करने वाले फोन को टारगेट करने की योजना बना रहा है.
ये सिफारिशें फेडरल जज अमित मेहता के सामने पेश की जाएंगी. उन्होंने ही अगस्त में फैसला सुनाया था कि गूगल ऑनलाइन सर्च मार्केट में मोनोपॉली को रोकने वाले कानूनों का उल्लघंन किया है. आपको बता दें कि गूगल क्रोम पर 3 बिलियन से ज्यादा एक्टिव यूजर्स मौजूद हैं.
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कंपनी का ब्राउजर गूगल के इकोसिस्टम का एक अहम हिस्सा है. यह टारगेटेड एड लोगों तक पहुंचाने के लिए यूजर के डेटा को जमा करता है. इससे यह कंपनी के एड बिजनेस में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. Bloomberg Intelligence के एक्सपर्ट मंदीप सिंह के अनुसार, इस ब्राउजर को अगर बेचा जाता है तो गूगल को कम से कम 15-20 बिलियन डॉलर मिल सकता है.
हालांकि, गूगल क्रोम की वैल्यू केवल रेवन्यू के हिसाब से नहीं है. TECHnalysis Research के Bob O’Donnell के अनुसार, यह गूगल की दूसरी सर्विस के लिए एंट्री गेट के तौर पर काम करता है. इस वजह से इसकी सही वैल्यू डिसाइड करना काफी मुश्किल है. गूगल क्रोम फिलहाल अमेरिकी बाजार में 61 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है.
जस्टिस डिपार्टमेंट यह भी सिफारिश करने की प्लानिंग कर रहा है कि Google अपने Android ऑपरेटिंग सिस्टम को Google Play और सर्च जैसी दूसरी सर्विस से अलग कर दें. Google के नियामक मामलों के उप अध्यक्ष Lee-Anne Mulholland ने इन प्रस्तावों को एक “मूल एजेंडा” बताया है. उन्होंने कहा है कि इससे ना केवल यूजर्स और डेवलपर्स को नुकसान होगा बल्कि US तकनीकी नेतृत्व भी प्रभावित होगा. इस वजह से गूगल इन सिफारिशों का विरोध करता है.
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