भारत का नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट-6ए गुरुवार को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित हो गया। हालांकि यह भी 2015 में छोड़े गए अपने पूर्ववर्ती जीसैट-6 की तरह विवादों में उलझा रहा था।
भारत का नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट-6ए गुरुवार को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित हो गया। हालांकि यह भी 2015 में छोड़े गए अपने पूर्ववर्ती जीसैट-6 की तरह विवादों में उलझा रहा था।
दो हजार किलो के यह दोनों उपग्रह विवाद का विषय रहे हैं। इसके 90 फीसदी ट्रांसपोंडर इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन द्वारा एक सौदा के तहत देवास मल्टीमीडिया लिमिटेड को पट्टे पर दिए जाने थे। यह सौदा फरवरी 2011 में रद्द हो गया था, क्योंकि यह देश की रक्षा जरूरतों को पूरा करने में विफल रहा था।
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इस विवादास्पद सौदे के तहत बेंगलुरू की देवास कंपनी 12 साल तक अपनी डिजीटल मल्टीमीडिया सेवा के लिए जीसैट-6 और जीसैट-6 ए के ट्रांसपोंडरों का प्रयोग महत्वपूर्ण एस-बैंड वेवलैंथ में करने वाली था। एस-बैंड वेवलैंथ मुख्य रूप से देश के रणनीतिक हितों के लिए रखी जाती है।
अंतरिक्ष ने देवास के साथ जनवरी, 2005 में 30 करोड़ डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे और सरकार को सूचित किए बिना दो उपग्रहों (जीसैट-6 और जीसैट-6 ए) के लिए अंतरिक्ष आयोग और केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी प्राप्त कर ली थी, जिसके तहत 90 फीसदी की भारी भरकम क्षमता मल्टीमीडिया सेवा प्रदाता को पट्टे पर दी जानी थी।
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दिसंबर 2009 में विवाद सामने आने के बाद सरकार के स्वामित्व वाले इसरो ने सौदे की समीक्षा का आदेश दिया और अंतरक्षि आयोग ने जुलाई 2010 में इस सौदे को रद्द करने की सिफारिश कर दी। अंतरिक्ष ने पांच फरवरी 2011 को सौदे को रद्द कर दिया। इसके बाद जीसैट-6 को 2015 में लॉन्च किया गया।