कुछ साल पहले भारतीय सरकार ने FASTag को सभी गाड़ियों के लिए अनिवार्य कर दिया था। लेकिन अब ऐसा लगता है कि यह ही बदलने वाला है। सरकार जल्द ही एक नई तकनीकी पेश कर सकती है जो इसकी भी जगह ले सकती है। यहाँ हम बात कर रहे हैं ग्लोबल नेविगेशन सैटलाइट सिस्टम (GNSS) की।
इस नई तकनीकी के साथ सरकार का लक्ष्य वर्तमान सिस्टम की सीमाओं को पहचानना और आगे की सड़क यात्राओं को कारगर बनाना है। पीछे की तरफ देखें तो FASTags को देश में उन लंबी लाइनों से निपटने के लिए पेश किए गए थे जो हमें टोल प्लाज़ा पर देखने को मिलती हैं। इसने एक हद तक इस समस्या से निपटने में मदद की भी, लेकिन इसकी भी अपनी कुछ सीमाएं हैं।
यह भी पढ़ें: iPhone 16 Series के लॉन्च से पहले धम्म से गिर गई पुराने iPhones की कीमत, मौके के मार दो चौका
एक-दो बार आपने भी यह अनुभव किया होगा कि आप टोल प्लाज़ा पर उन परेशान करने वाली लंबी लाइनों में फंसे हुए हैं, जिनके कारण अक्सर कई कामों में देरी होती है। कभी कभार कार्ड्स को रीड नहीं किया जा सकता और इससे ट्रैफिक जाम हो जाता है। यही कारण है कि GNSS को टेस्ट किया जा रहा है।
GNSS सिस्टम एक साथ फिजिकल टोल की जरूरत को खत्म करने में मदद करेगा। यह गाड़ी की एकदम सही लोकेशन ट्रैक करने और हाईवे पर तय की गई दूरी के आधार पर टोल कैलकुलेट करने के लिए GPS और GPS-Aided GEO Augmented Navigation (GAGAN) का इस्तेमाल करेगा।
तो इसके साथ यूजर्स को हर टोल बूथ पर नहीं रुकना पड़ेगा। और वहीं दूसरी ओर यह उनका भी ध्यान रखेगा जो टोल से बचने के लिए बहुत गलत तरीके अपनाते हैं। यूजर्स को उचित तरीके से उतना भुगतान करना ही होगा जितनी दूरी का वे सफर तय कर रहे हैं।
यह भी पढ़ें: 15 मिलियन ग्राहकों से गूगल ने क्यों मांगी माफी, देखें माजरा
तो जैसे ही GNSS सिस्टम सेटअप होता है, डिजिटल वॉलेट में से रकम अपने आप कट जाएगी जिसमें यूजर ने पहले से ही पैसे ऐड किए हुए होंगे। तो इससे झंझट भी खत्म होता है।
शुरुआत में GNSS सिस्टम को मौजूदा फास्टैग सिस्टम के साथ एकीकृत किया जाएगा। कुछ टोल लेनों को GNSS स्वीकार करने के लिए अपग्रेड किया जाएगा। समय के साथ इसे और भी बढ़ा दिया अजेगा। यह बैंगलुरू-मैसूर और पानीपत-हिसार नेशनल हाईवे पर पहले से ही उपलब्ध है। यहाँ GNSS तकनीकी को टेस्ट किया किया जा रहा है।