कहाँ पड़ सकता है सूखा, अब 5 महीने पहले ही चलेगा पता

Updated on 29-Jan-2019
HIGHLIGHTS

Australian National University यानी ANU, Canberra के रिसर्चर्स ने इस बात का पता लगाया है कि सूखे और प्राकृतिक रूप से लगने वाली आग के बारे में महीनों पहले ही पता लगाया जा सकता है। ये जानकारी सैटेलाइट्स से मिले डाटा के मुताबिक दी गयी है।

खास बातें:

  • ANU रिसर्चर्स ने किया खुलासा
  • डाटा इकठ्ठा करने के लिए GRACE सैटेलाइट्स का हुआ इस्तेमाल
  • डाटा से पता चलेगा अंडरग्राउंड वाटर डिस्ट्रीब्यूशन के बारे में

 

Australian National University के रिसर्चर्स की नई रिपोर्ट के मुताबिक ANU ने कई डाटा का इस्तेमाल करके यह पता लगाया है कि पृथ्वी के अंडरग्राउंड वाटर को मापा जा सकता है। ANU रिसर्चर Siyuan Tian और उनकी टीम ने इस सम्बन्ध में Nature Communications  पेपर में इस जानकारी को साझा किया है। उनका कहना है कि वे सैटेलाइट्स के इस्तेमाल से पानी की उपलब्धता के बारे में पता लगा सकते हैं कि आखिर किस तरह से सूखा पड़ता है और वो ऐसे कौन से कारण हैं जिनकी वजह से हरे भरे मैदान चट्टान और जंगल बन जाते हैं।

इन्ही सूखे और बंजर मैदानों की वजह से ही आग लगने का भी खतरा बन जाता है। यही वजह है कि खेती में भी इससे काफी दिक्कत आती है। Tian का कहना है कि अब लगभग 5 महीने पहले ही इस बात की भविष्यवाणी की जा सकती है कि कब इस तरह की समस्या आ सकती है।

को-रिसर्चर Albert van Dijk और ANU Fenner School of Environment and Society के प्रोफेसर ने कहा है कि इस स्टडी के दौरान सैटेलाइट्स से मिले डाटा को इकठ्ठा करके वाटर साइकिल और प्लांट ग्रोथ का मॉडल तैयार किया गया जिससे कि underground water distribution को बेहतर समझा जा सके। रिसर्चर्स का कहना है कि हमने इस तरह की परिस्थिति में हमेशा आसमान की ओर देखा है लेकिन अब स्पेस और अंडरग्राउंडस से यह संभव हुआ है कि हम सूखे को लेकर निश्चित तौर पर तैयार रह सकते हैं। इससे हमें उस सूखे की स्थिति के बाद आने वाली बाकी आपदाओं जैसे आगजनी समाया से बचने का काफी समय मिल सकेगा।

इसके बाद ANU के Australian Flammability Monitoring System से इन फोरकास्ट को लेटेस्ट सैटेलाइट मैप्स से जोड़ा जायेगा जिससे सूखे के बाद लगने वाली आग का फाई पहले से पता लगाया जा सके। Tian और उनकी टीम ने यह डाटा Gravity Recovery and Climate Experiment (GRACE) satellites से लिया है लेकिन भविष्य में ये डाटा GRACE Follow-On satellites से लिया जायेगा जिन्हे पिछले साल  स्पेस में रखा गया है।

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