बीते कल भारत ने अपना नाम इतिहास के पन्नों में शामिल कर लिया है। भारत Chandrayaan-3 के विक्रम लैंडर को ल्यूनर सरफेस पर सफलतापूर्वक नेविगेट करने के बाद चंद्रमा पर सफलतापूर्वक लैंड करने वाला चौथा और इसके दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने वाला पहला देश बना। हालांकि, चंद्रमा तक पहुंचना केवल आधा काम था, असली काम तो अब शुरू हुआ है। अब प्रज्ञान रोवर और विक्रम लैंडर दोनों अपनी जांच-पड़ताल शुरू करेंगे और चंद्रमा की संरचना को एनालाइज़ करेंगे।
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यह एक और बड़ी उपलब्धि है क्योंकि यह दिखाता है कि पूरी यात्रा के दौरान कोई भी नुकसान नहीं हुआ और मिशन कंट्रोल अब भी लैंडर के साथ प्रभावी तौर पर कम्यूनिकेट कर रहा है। केवल 14 दिनों के अंदर चंद्रयान-3 मिशन के निष्कर्ष से पहले अधिक से अधिक डेटा इकट्ठा करना बेहद आवश्यक है।
अब, प्रज्ञान रोवर चंद्रमा के भूविज्ञान और वातावरण की जांच-पड़ताल शुरू करेगा। इसका पहला काम चंद्रमा की मौलिक रचना और ध्रुवीय क्षेत्र को समझना है। चंद्रमा की रचना को समझने से इसकी और पृथ्वी की उत्पत्ति को लेकर भी जानकारी मिलेगी क्योंकि ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा पृथ्वी से अलग हो गया था।
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इसके अलावा रोवर चंद्रमा की धूल की परत का भी अध्ययन करेगा जिसे regolith नाम से जाना जाता है। साथ ही विक्रम लैंडर इस दौरान नजदीकी सरफेस लेवल, क्रस्ट और मैन्टल की भी जांच पड़ताल करेगा।
Pragyan rover का वज़न 26 kg है और जांच-पड़ताल के लिए इसमें ढेरों उपकरण के साथ-साथ नेविगेशन और मैपिंग के लिए स्टीरियोस्कोपिक 3D कैमरे दिए गए हैं। यह चंद्रमा पर 1 cm प्रति सेकंड की स्पीड से चलेगा। दिलचस्पी की बात यह है कि रोवर पृथ्वी से प्रत्यक्ष तौर पर कम्यूनिकेट नहीं कर सकता। ऐसे में विक्रम लैंडर प्रज्ञान से पृथ्वी को डेटा ट्रांसमिट करेगा जिससे डेटा को जल्दी एनालाइज़ किया जा सकेगा।
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