चंद्रयान -1 ने चंद्रमा पर पानी के दावे को दी मजबूती
वैज्ञानिकों ने चंद्रमा की मिट्टी में पानी का पहला ग्लोबल मैप बनाया है। यह मैप नासा के चंद्रमा मिनरलॉजी मैपर से लिए गए नए कैलिब्रेटेड डेटा की मदद से तैयार किया गया है, जो भारत के अंतरिक्ष यान चंद्रयान -1 की मदद से संभव हो सका है। विज्ञान अकादमी के 2009 में प्रकाशित जर्नल के अध्ययन में पानी की शुरुआती खोज में सामने आया था कि चन्द्रमा की मिट्टी के अंदर में एक एटम में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन भी होते हैं।
पहले की रिपोर्ट के मुताबिक, "चंद्रमा की सतह पर पानी के आसार तकरीबन हर जगह मौजूद हैं, और यह केवल ध्रुवीय इलाकों तक ही सीमित नहीं है," ऐसा अध्ययन के प्रमुख लेखक शुआई ली ने रोड आइलैंड, यू.एस. के प्रोवीडेंस में स्थित ब्राउन यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. का छात्र रहते हुए अध्ययन किया था। ली ने आगे कहा कि "पानी की मात्रा ध्रुवों की ओर बढ़ती है और अलग-अलग रचनात्मक इलाकों में महत्वपूर्ण अंतर नहीं दिखाती है," ली अब हवाई विश्वविद्यालय में एक पोस्ट-डॉक्टरल रिसर्चर हैं।
हाई लैटीट्यूड में पानी की एकाग्रता करीब 500 से 750 भाग प्रति मिलियन तक पहुंचती है। यह मात्रा पृथ्वी के सबसे सूखे रेगिस्तान की रेत में पाए जाने वाली मात्रा से कम है, लेकिन यह बहुत कम भी नहीं है। ब्राउन यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर राल्फ मिलिकेन कहते है, "यह एक रोडमैप है जिससे पता चता है कि चंद्रमा की सतह पर पानी मौजूद है"। मिलिकेन ने आगे कहा कि "अब जब हमारे पास ये मात्रात्मक नक्शे हैं जहां दिखाया गया है कि पानी कहां है और किस मात्रा में है, तो हम यह सोचना शुरू कर सकते हैं इस पानी का इस्तेमाल अंतरिक्ष यात्री के पीने के लिए या ईंधन बनाने के काम में लाया जा सकता है या नहीं"।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जिस तरह से चंद्रमा पर पानी फैला हुआ है, उसके स्रोत के बारे में भी सुराग मिलते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि चंद्रमा पर पानी बड़े पैमाने पर एक समान ही मिलता है। मगर चंद्रमा के मध्य में इक्वेटर की तरफ यह कम हो जाता है। यह पैटर्न सौर हवा के माध्यम से लगातार एक समान ही है।
हालांकि अपवादों के बावजूद अध्ययन में पानी के बड़े पैमाने पर सौर हवा को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। उदाहरण के लिए, शोधकर्ताओं ने चंद्रमा की मध्य रेखा की तरफ इक्वेटर के पास पानी को औसत से अधिक पाया, जहां मिट्टी में पानी की पृष्ठभूमि कम थी।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि चंद्रमा पर दिन के दौरान 60 डिग्री से कम के लैटीट्यूड पर पानी की एकाग्रता में परिवर्तन होता है। सुबह और शाम में गीला होने से चंद्रमा दोपहर के आसपास करीब करीब पूरा सूख जाता है। यह अस्थिरता 200 प्रति मिलियन के करीब हिस्सों में हो सकती है।
ये नए रोडमैप मददगार तो हैं फिर भी चन्द्रमा पर पानी के बारे में कई सवालों को बिना जवाब दिए छोड़ देते हैं। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि स्थायी रूप से छाया वाले इलाके बड़ी मात्रा में पानी या पानी के बर्फ हो सकते हैं। मिलिकेन कहते हैं कि "क्योंकि यह छायादार इलाकों में हैं इसलिए इन आंकड़ों की मदद से पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि यह बर्फ ही होगी"।