अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड में अब तक खोजे गए सुपरनोवा से भी 10 गुना शक्तिशाली सुपरनोवा की तलाश की है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह सुपरनोवा न केवल पिछले सुपरनोवा से अधिक चमकदार है बल्कि उससे अधिक शक्तिशाली भी है। NASA और ESA के मुताबिक, यह सुपरनोवा दो विशाल तारों के आपस में टकराने के कारण बना है। हाल ही में ब्रिटेन और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने इसका खुलासा किया है। उनकी यह खोज नेचर एस्ट्रोनॉमी के पीयर रिव्यू जर्नल में प्रकाशित हुई है। इस रिसर्च पेपर में उन्होंने इस नई खोज से जुड़ी बातों पर प्रकाश डाला है। बर्मिंघम यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स ने इस खोज का नाम SN2016aps रखा है। शोधकर्ताओं ने इसे कई और मामलों में भी बेहद ख़ास बताया है।
आमतौर पर ऐसे सुपरनोवा अपनी कुल ऊर्जा का केवल एक फ़ीसदी दिखने वाले प्रकाश की कुछ दूरी तक ही दिखाई देता है। हालांकि, SN2016aps के मामले में ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह कही बड़ा हिस्सा प्रकाश के रूप में निकालता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस सुपरनोवा की ऊर्जा 200 ट्रिलियन गीगाटन के विस्फोट के बराबर होगी।
इस शोध के दौरान यह बात भी सामने आई है कि अत्यधिक ऊर्जा वाले सुपरनोवा के इर्द-गिर्द बादलों में हाइड्रोजन की मात्रा काफी अधिक होती हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसकी वजह सुपरनोवा का निर्माण है जो सूर्य जैसे दो तारों के आपस में मिल जाने के कारण हुआ है। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि अब तक ऐसा केवल सैद्धांतिक तौर पर ही होता आया था लेकिन पहली बार ऐसा कुछ होने का प्रमाण भी मिला है।
जब कोई तारा अपनी उम्र पूरी कर लेता है तो उसकी ऊर्जा उसमें से बाहर आने लगती है। आम भाषा में इसे तारों का टूटना कहा जाता है जबकि वैज्ञानिकों की भाषा में इसे सुपरनोवा कहा जाता है। इसी तरह सुपरनोवा से नए तारों का जन्म होता है। सुपरनोवा की ख़ासियत यह भी होती है कि इस दैरान निकलने वाली ऊर्जा सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा से भी अधिक होती है। इसकी शक्तिशाली ऊर्जा के सामने हमारी धरती की आकाशगंगा कई हफ्तों तक फीकी पड़ सकती है।