कोर्इ व्यक्ति हाल ही में संपन्न भारतीय विज्ञान कांग्रेस में हुर्इ चर्चा को देख सकता है जिसने काफी सुर्खियां बटोरीं। यह आपको सोचने पर मजबूर करेगा कि इसे दो तरह के लोगों से निर्मित एक सुपर टीम के द्वारा आयोजित किया गया था, एक दल वह जिसमें एआर्इबी, कॉलेज और हंसी मजाक और प्याज का देशी स्वरूप था और दूसरे दल में प्रचलित भोजन, दमनकारी और अन्य ‘आप विश्वास नहीं करेंगे कि एक्सवार्इजेड ने क्या किया’ या ‘एक्सवार्इजेड ने एबीसी के साथ जो किया वह आपके दिल को गर्म कर देगा’ ऐसा वेबसाइट था।
इसके मूल कार्यक्रम में देश तथा दुनिया में रहने वाले कुछ तेज मन वाले लोगों की ओर से कर्इ प्रस्तुतियां थी। कांग्रेस ने ‘सामाजिक समस्याओं में गणित के प्रयोग’ और अंतरिक्ष विज्ञान तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी’ से संबंधित अनेकानेक चर्चाओं को देखा। लेकिन चूंकि हम सब अगला बड़ा मजाक पाने के लिए विकास के द्वारा यंत्रस्थ बना दिये गये हैं, मीडिया कवरेज को धन्यवाद। हम उन विशेषज्ञों के चक्कर में फंस गये जिन्होंने ‘संस्कृत के माध्यम से प्राचीन विज्ञान’ के पैनल की चर्चा में ‘प्राचीन भारतीय विमानन प्रौद्योगिकी’ पर बोला था।
उस प्रस्तुति का सार यह था कि प्राचीन भारत के लोग आधुनिक प्रौद्योगिकी में पहले से ही पारंगत थे और आज जो भी हो रहा है वह लाखों वर्ष पहले ही हो चुका था। निश्चित रूप से, यह बात हमें यह मान लेने को बाध्य करती है कि हमारे पूर्वज भी सोम रस के चक्कर में बर्बाद होने वाली अपनी रातों को
तिहास बनाने के लिए इंस्टाग्राम के संस्करण का प्रयोग करते थे, या सांस की शिकायत होने पर जब परिचारक या परिचारिकायें अपने विमान में उड़ान भरने के दौरान आर्इपैड के संस्करण को स्विच ऑफ करने के लिए कहा करते थे।
इस प्रकार इन सारी चीजों को हमने भारतीय विज्ञान कांग्रेस में आनंद बोदास, एक पाइलट ट्रेनर और अमेय जाधव, एक सुप्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री द्वारा निर्मित यादगार . प्रस्तुति से लिया गया है। हालांकि यह आश्चर्यजनक बात है कि पागलों जैसे भूरे बाल वाले एक ग्रीक अमरीकी व्यक्ति के द्वारा उन्हें मंच पर नहीं बुलाया गया।
1.बोदास और जाधव ने अपने शोध का आधार जिस वैज्ञानिक दस्तावेज को बनाया वह वैमानिक शास्त्र है, एक ऐसा दस्तावेज जिसके ‘अनेक हजार साल पुराना’ होने का दावा किया जाता है, एक ऐसा दावा जिसमें कहा जाता है इसका लेखन 1904 या उसके बाद हुआ है, भारतीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा इसका खंडन किया जाता रहा है।
2. प्राचीन भारत के लोगों ने एक ऐसे विमान-सह-अंतरिक्षयान का आविष्कार किया था जो मंगल की यात्रा कर वापस आ सकता था। लेकिन खेद है कि इसरो मंगल यान, आपके पास एक आराध्य ट्वीटर प्रस्तुति हो सकती है लेकिन आपने यह यात्रा में कुछ हजार वर्षों की देरी करदी।
3. वायुयान मिसाइल से लैस हुआ करते थे ओर अफवाह यह भी रही है कि वे विमानचालक को क्विक सेव और क्विक लोड करने की क्षमता भी प्रदान करते थे।
4. ठीक है, जाइए मदहोश होकर एक कलम लीजिए और अपने दिल की बात को कागज के एक टुकड़े पर लिख डालिए। तब आपको वह बिखराव दिखेगा जो आपकी कलम से निकला होगा? धत्त! इन प्राचीन भारतीय विमानों में उड़ान विधि के पालन की क्षमता थी और वे क्लाउड स्टार्ट, स्टॉप, उपर जाना, नीचे जाना, पीछे जाना, बीच हवा में तिरछा चलना सबकुछ जानते थे मानों वे शतरंज की गोटी हों।
5. इन वायुयानों के चालक सिल्क, कॉटन और रहस्यमय जलीय पादपों से निर्मित फाइबर के सूट में सुसज्जित होते थे जो इन सूट्स को शॉकप्रूफ, विद्युत व जल अवरोधी बनाते थे। बोनस शुरू होता है: +15 INT, +15 CHA +25 DEF इन वायुयानों में रडार भी था। क्योंकि उन्होंने किया था,
क्या बुरा?
6. अब, कटिंग एज के मजाक और व्यंग्य के इन अनुच्छेदों के बीच, हमें उन अनेक लोगों को नहीं भूलना चाहिए जो वास्तव में हमसे पहले आये थे और जिन्होंने वैज्ञानिक विचारों में बहुत प्रयास किए, और मेरा यह मतलब नहीं है कि बैटलस्टार और गैलेक्टिका सलाह दे। कर्इ वैज्ञानिक आविष्कार उनके द्वारा किए गए जो र्इसा पूर्व या र्इसा के युग में रहते थे। उनमें से कुछ को उनके समय के लिए अभी भी अतुल्य रूप से उन्नत समझा जा सकता है, और उसे स्वीकार करने के लिए हमें भगवा धारा वाले छद्म विज्ञान को प्रवाहित करने की जरूरत नहीं है।
जैसी कि प्रवृत्ति है, उम्मीदतन, अगली बार जब भारतीय विज्ञान कांग्रेस होगी, तब हमें भारतीय विज्ञान-उपन्यास में घुमाव देखने को मिलेगा जिसमें हम कहानियां सुनेंगे कि कैसे हमारे पूर्वज स्वविध्वंसी बाणों का उपयोग कर एक दूसरे से स्नैप-चैट किया करते थे या कैसे वे उड़ कर यूरेनस पर गए और वहां बस गए।