इटरनेट और स्मार्टफो के इस दौर में बच्चे और युवा होते किशोर-किशोरियां अपना काफी समय ऑनलाइन रहते हुए बिताते हैं लेकिन उन्हें ऑनलाइन खतरों के विषय में कोई जानकारी नहीं होती। पश्चिमी देशों जहां पहले से ही बेसिक इंटरनेट सेफ्टी के लिए कैंपेन चला रहे हैं, भारत में अभे तक ऐसे किसी जागरुकता कैंपेन का निरा अभाव है। यद्यपि मैकफी की नई स्टडी भारतीय किशोर-किशोरियों में रिस्की ऑनलाइन की बढ़ रही आदतों के प्रति सचेत करता है और ऑनलाइन सुरक्षा के लिए यहां जागरुकता कैंपेन चलाए जाने की जरूरत पर बल देता है।
मैक्फी के नए ‘ट्वीन्स, टीन्स एंड टेक्नॉलोजी 2014’ रिपोर्ट के अनुसार लगभग 50% भारतीय युवा अलग-अलग साइबर क्राइम के शिकार हुए हैं। इसके अनुसार इनमें एक-तिहाई (36%) खुद ही इसके लिए जिम्मेदार हैं।
रिपोर्ट के अनुसार इस कारण उनमें गुस्सा और शर्म की भावना आती है और ऑफलाइन रहते हुए भी वे इससे प्रभावित रहते हैं। रिस्की ऑनलाइन एक्टिविटीज युवाओं के लिए किस हद तक घातक हो सकतते हैं और किस हद तक उन्हें संवेदशील बना सकते हैं आगे दिए कुछ आंकड़ों के साथ मैकफी ने इसे समझाने की कोशिश की है।
भारतीय युवाओं के लिए ही रिस्क क्यों?
विश्व में सबसे ज्यादा स्मार्टफोन और इंटरनेट प्रयोग करने वाली आबादी भारत में भी है। उसमें भी आंकड़े यह कहते हैं कि इंटरनेट प्रयोग करने वालों की बड़ी आबादी में सबसे ज्यादा युवा ही हैं। युवावस्था की तरफ बढ़ते बढते बच्चे अपना ज्यादा समय इंटरनेट और इससे जुड़े डिवाइस पर बिताते हैं। मैकफी के रिपोर्ट के अनुसार 70% किशोर पूरे सप्ताह में 5 घंटे से भी ज्यादा समय ऑनलाइन रहते हुए बिताते हैं। इसमें डेस्कटॉप यूज करने वाले अभी भी सबसे ज्यादा (41%) हैं जबकि लैपटॉप यूजर्स 36% और स्मार्टफोन यूजर्स 27% है।
सभी नेटवर्क को जॉइन करने की कोशिश
रिपोर्ट के अनुसार इंडियन यूथ लगभग सभी मैसेजिंग और सोशल नेटवर्किंग एप्स से जुड़ने की कोशिश करते हैं। सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म्स में फेसबुक इनमें सबसे ज्यादा पॉपुलर (93%) है। इसके अलावे 87% यूट्यूब यूजर्स और 79% व्हाट्स एप के यूजर भी हैं।
स्नैपचैट, पिनटेरेस्ट, टिंडर, टम्बलर और वाइन जैसे सोशल साइट्स पर युवाओं में 10-12 साल के बच्चे ज्यादा हैं जबकि इनपर रजिस्टर होने के लिए कम से कम 13 साल का होना जरूरी है। एक नया ट्रेंड यह बन गया है कि 52% भारतीय युवा अपने सोशल साइट्स को स्कूल में खोलते हैं। 57% 8-12 साल के बच्चों और 47% 13-17 साल के बच्चों में भी इसमें कड़ी प्रतिस्पर्धा है।
जोखिम भरी जानकारियां बड़े पैमाने पर शेयर की जाती हैं
रिपोर्ट के अनुसार यूथ बड़े पैमाने पर ऐसी निजी जानकारियां शेयर करते हैं जो ऑनलाइन शेयर करना बहुत घातक हो सकता है। कई बार वे ऐसा जानबूझकर करते हैं लेकिन कई बार अनजाने में भी वे ऐसा करते हैं। 90% ऑनलाइन जानकारियां शेयर करने वाले भारतीय युवाओं में 80% को पता है कि यह उनकी पर्सनल आइडेंटिटी को नुकसान भी पहुंचा सकता है। 70% लोग ऐसे हैं जो इसपर अपना ई-मेल, फोन या घर का पता भी पोस्ट करते हैं।
63% यूथ एप्स पर जीपीएस सर्विस या अपने लोकेशन को ऑफ नहीं करते। ऐसे में कोई भी उनका लोकेशन देख सकता है। इतना ही नहीं मात्र 46% ही सोशल नेटवर्किंग पर अपने कंटेट को प्रोटेक्ट करने के लिए पर्सनल सेटिंग का प्रयोग करते हैं।
हम-उम्र ग्रुप का दबाव
आज के युवाओं की यह भी एक बड़ी परेशानी है। वे अपनी वास्तविक जिंदगी से ज्यादा सोशल मीडिया ए प्रभाव में होते हैं। मैकफी रिपोर्ट के अनुसार दो-तिहाई (66%) भारतीय युवा स्वीकार करते हैं कि निजी जिंदगी से ज्यादा सोशल मीडिया की पॉपुलरिटी उन्हें पसंद है। 72% सोशल मीडिया शेयर पोस्ट किए अपने फोटोग्राफ्स पर मिले ‘लाइक्स’ से अपनी लोकप्रियता आंकते हैं।
सोशल मीडिया का यह दवाब इनमें कितना है यह इसी से समझा जा सकता है कि 64% युवाओं ने माना कि वे अपनी लोकप्रियता बढ़ाने या दुबारा पाने के लिए अपने पुराने पोस्ट या फोटोज को दुबारा लाते हैं या फेक अकाउंट से कई बार ऐसे फोटोग्राफ्स दालते हैं जो उनके होते भी नहीं। हालांकि 46% युवा ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि उनके पोस्ट या एक्टिविटी पर ज्यादा लाइक्स, कमेंट्स, शेयर या ट्वीट आना उन्हें खतरनाक लगता है।
क्या किया जाना चाहिए?
स्थिति साफ है कि बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों में माता-पिता की जो संलिप्तता होनी चाहिए वह नहीं है। इसमें सबसे बड़ी परेशानी यह है कि यहां माता-पिता ज्यादा तकनीक-प्रेमी नहीं हैं और वे अपने बच्चों से कभी भी ऑनलाइन सुरक्षा पर बात नहीं करते। मैकफी के रिसर्च की मानें तो मात्र 46% युवा ही ऐसा थे जिन्होंने कहा कि उनके माता-पिता उनसे ऑनलाइन सुरक्षा के मुद्दे पर बात करते हैं। इनमें कुछ (52%) ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि उनके माता-पिता इन बातों की परवाह नहीं करते।
जाहिर तौर पर माता-पिता को बच्चों से इस संबंध में बात करनी चाहिए। इसके अलावे उनके बच्चे ऑनलाइन क्या कर रहे हैं समय-समय पर उन्हें इसकी जांच भी करते रहनी चाहिए। इसके लिए उनका तकनीक को समझना जरूरी है। इसलिए उन्हें नई तकनीक को जानने और समझने की कोशिश भी करनी चाहिए।
इंटरनेट आज मुख्यधारा में शामिल हो चुका है, स्कूल्स को यह बात समझते हुए सभी संभव ऑनलाइन रिस्क से बचने के लिए कोर्सेस चलाने चाहिए। इसके साथ साइबर क्राइम जैसी मुश्किलों का सामना करने पर चुप रहने के बजाय इसपर आवाज उठाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। जागरुकता ही किशोर-किशोरियों को ऑनलाइन रिस्क से बचाने में सबसे ज्यादा मददगार हो सकता है।